कहा और माना जा रहा है कि युवा इस देश की किस्मत लिखंगे . कई हैं जो इस रास्ते पर चल भी रहे हैं. ताजा उदाहरण युवा एवं खेल मंत्रालय संभाल रहे दिल्ली के युवा नेता अजय माकन की करते हैं. दिल्ली के निवासी और राष्ट्रमंडल खेलों को नजदीक से देखने वाले माकन ने भारतीय खेलों की नसीब लिखने का बीड़ा उठाया और खेल विधेयक को संसद में लेकर आए. पर उन्हें वापस उसी रास्ते पर भेज दिया गया जिस रास्ते से चलकर कभी 8 ओलंपक स्वर्ण जीत चुकी भारतीय हॉकी चलती आ रही है. ये क्यों और कैसे हुआ ये समझना ज़रूरी है. सिक्के के तीन पहलू हैं. पहला अजय माकन जो युवा राजनेता हैं और कांग्रेस पार्टी के दिल्ली से संसद हैं. माकन पहली बार चर्चा में तब आए थे जब शिला दीक्षित ने अपने मंत्रिमंडल में माकन को ट्रांसपोर्ट, पॉवर, और टूरिज्म मंत्रालय का कार्यभार दिया था. 2001 में मंत्रालय मिलते ही माकन ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाली गाड़ियों के लिए सीएनजी के प्रयोग से दिल्ली के वायुमंडल को ज्यादा प्रदुषण से बचाने तथा पेट्रोल और डीजल पर बढ़ रहे बोझ से मुक्ति दिलाई. इस बार माकन ने खेलों के वायुमंडल में फैले प्रदुषण को हटाने की कोशिश की थी. पर यंहा सिक्के के दुसरे पहलू में बैठे लोग थे. खेल संघों के कार्यकारणी में बैठे लोग. अगर आज़ाद भारत का इतिहास उठा कर देखा जाए तो इन्ही लोगों के कारण भारतीय खेलों का पतन दिखता है. केन्द्रीय या राज्य स्तरीय खेल संघो में राजनेताओं और उद्योगपतियों की जमात है जो कई सालों से कब्ज़ा जमाये बैठे हैं, और इन्हीं संघों में पूर्व खिलाड़ियों की उपस्थिति अंगुलियों पर गिनी जा सकती है. यही वजह बनती है खेलों में भ्रस्टाचार पनपने की. खेलों पर राजनीतिक ज़मावड़े के कारण माकन की कोशिश थी कि खेल संघों को सुचना के अधिकार कानून के तहत लाया जाए जिससे इसमें पारदर्शिता लाई जा सकती है. साथ ही कार्यकारणी में 25 प्रतिशत से ज्यादा वो लोग हों जो कभी संबंधित खेल से खिलाड़ी के तौर पर जुड़े रहे हों. पर ऐसे कदम से उन राजनेताओं की रोजी रोटी बंद हो जाएगी जो खेल संघ के पद पर रहते हुए मोटी कमाई करते हैं और प्रोफाइल को समाज में कैश कराते हैं.
ज़रा ध्यान दीजिये शरद पवार (क्रिकेट, महाराष्ट्र ओलंपिक संघ ), सुरेश कलमाड़ी (ओलंपिक), विजय मल्होत्रा (तीरंदाजी), अभय सिंह चौटाला (बॉक्सिंग), जगदीश टायटलर (जुडो), अखिलेश दास (बैडमिन्टन, उत्तर प्रदेश ओलंपिक संघ), प्रफुल पटेल (फ़ुटबाल), यशवंत सिन्हा (टेनिस), बिरेन्द्र प्रताप वैश्य (वेटलिफ्टिंग), तरुण गोगोई, रोक्य्बुल हुसैन ( असम ओलंपिक संघ ), रमण सिंह ( छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ ), जे पी नद्दा, ( हिमाचल ओलंपिक संघ), रमेश मेंडोला ( मध्य प्रदेश ओलंपिक संघ ), बिजोय कोइजम (मणिपुर ओलंपिक संघ), लाल थान्ह्वाला (मिजोरम ओलंपिक संघ), नेइफिउ रिओ (नागालैंड ओलंपिक संघ), समीर डे (उड़ीसा ओलंपिक संघ), सुखदेव सिंह धीधंसा (पंजाब ओलंपिक संघ), फारूख अब्दुल्ला (जम्मू एवं कश्मीर क्रिकेट संघ ), सी पी जोशी ( राजस्थान क्रिकेट संघ ), विलासराव देशमुख (मुंबई क्रिकेट संघ ), ज्योतिरादित्य सिंधिया (मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ ), राजीव शुक्ला (उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ ), अरुण जेटली (दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ), नरेंद्र मोदी (गुजरात क्रिकेट संघ), दयानंद नार्वेकर (गोवा क्रिकेट संघ) और अनुराग ठाकुर ( हिमाचल क्रिकेट, ओलंपिक संघ ) जैसे व्यक्ति राजनेता हैं. इनके अलावा पंजाब के आई एस बिंद्रा, विदर्भ के प्रकाश दीक्षित, सौराष्ट्र के भारत शाह, बंगाल के जगमोहन डालमिया, केरल के टी आर बालाकृष्णन, झारखण्ड के अमिताभ चौधरी, आंध्र प्रदेश के डी वी सुब्बाराव समेत सैकड़ों ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी किसी राज्य या राष्ट्रिय स्तर का कोई भी खेल नहीं खेला है सिवाय खेल संघों में बैठ कर खिलाड़ियों के भविष्य के साथ खेलने के.
खेल विधेयक को लाने में जिस तीसरे पहलु से माकन को सबसे ज्यादा मुंह की खानी पड़ी वो बीसीसीआई है. राजनेताओं और उद्योगपतियों के भरमार होने के बावजूद बीसीसीआई एक सफल संस्था है जिसने भारतीय क्रिकेट को वाकई नया आयाम दिया है. फिर भी सच्चाई यह है कि क्रिकेट का भी जीवनपर्यंत भला तभी संभव है जब इसे रेगुलेट करने वाले लोग क्रिकेटर हों. बीसीसीआई में काबिज एन श्रीनिवासन, राजीव शुक्ला, अरुण जेटली जैसे लोगों के पास और भी कई काम है मसलन वकालत, उद्योग, देशवासियों का विकास वगैरह, वगैरह. पूर्व क्रिकेटर जो सन्यास के बाद खाली बैठे हैं वो भारतीय क्रिकेट को ज्यादा समय दे सकते हैं. खेल विधेक में माकन का नज़रिया एक हद तक जायज है. कार्यकारणी में 25 प्रतिशत से ज्यादा खिलाड़ियों के होने से खिलाड़ियों के नज़रिए को मजबूती मिलेगी एवं उनकी खेलों को लेकर समझ क्रिकेट के भविष्य को और भी बेहतर बनाएगी. और जंहा तक सवाल है सुचना के अधिकार की तो बीसीसीआई से जुड़े और खेल विधेयक का विरोध कर रहे लोगों को ये मालूम होना चाहिए कि फिलहाल धोनी बीसीसीआई के कप्तान नहीं हैं बल्कि भारतीय टीम के कप्तान हैं. सचिन बीसीसीआई के लिए नहीं खेलते वो प्रभाष जोशी जैसे उन दर्शकों के लिए खेलते हैं जिन्हें सचिन के आउट होने पर हार्ट अटैक आ जाता है. भारतीय टीम में खेलने वाले और इन्हें रेगुलेट करने वालों पर सूचना लेने का अधिकार है देशवासियों को. ये राजीव शुक्ला तय नहीं कर सकते यह दर्शक तय करेंगे. अजय माकन के प्रयास को सबसे ज्यादा विरोध का सामना बीसीसीआई और ओलंपिक संघ का करना पड़ा. लेकिन ओलंपिक संघ के कार्यकारणी के इतिहास पर ज़रा नज़र डालिए. दोराबजी टाटा 10 साल, महराजा भूपिंदर सिंह 10 साल, महराज भूपिंदर सिंह के बड़े बेटे महराजा यादविंद्र सिंह 22 साल एवं छोटे बेटे भालिन्द्र सिंह 19 साल, ऑम प्रकाश मेहरा 4 साल, विद्या चरण शुक्ला 3 साल, सिवंती अदिथन 9 साल, सुरेश कलमाड़ी 15 साल. और इतिहास के पन्ने को एक बार फिर पलटिये ये जानने के लिए कि क्रिकेट और हॉकी को छोड़कर खेलों में हमने किया क्या?
लेखक वॉयस ऑफ मूवमेंट दैनिक अखबार के समाचार सम्पादक हैं.
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