कई दिन पहले मैंने एक अपने करीबी से पूछा कि " जीत का ज़श्न और हार के ग़म में सबसे प्रभावी कौन है"? स्वाभाविक था इसलिए कोई ज़वाब नहीं आया, मुझे लगा दोनों ही इतने संवेदनशील व्यवहार हैं, कि उस वक़्त सोचा नहीं जा सकता प्रभावी कौन है, और बाद में इन्हें समझने कि ताक़त किसी साधारण मनुष्य में नहीं होता है. ये महज़ एक सवाल था जिसे मैं समझने कि कोशिश कर रहा था, एक ऐसे इंसान के साथ जिसने रिश्तों पर ना जाने कितनी किताबें पढ़ी थी, जिसने वक़्त को पहले से समझा था.
उस शाम हम किसी ज़रूरी मीटिंग में थे, और ये समझने या समझाने का वक़्त नही था, पर शायद वो मीटिंग मेरी ज़िन्दगी का सबसे यादगार लम्हा था. वो था तो एक बिजनेस मीट, पर उस शाम को वंहा बिजनेस नहीं सिर्फ रिश्तों कि बात हुई थी, जिसकी पहल शायद मैंने कि थी.
मेरा परिचय वंहा एक ऐसे इंसान के रूप में कि गई जिसे शायद 'अदभुत' कहा जाता है, पर मैं जीत और हार कि लड़ाई में उलझा उनके संबोधन को समझ नहीं पाया, क्यूंकि मैं "दोस्त" में उलझा था. वंहा बात दोस्ती कि हुई थी. शायद हम अपने ज़रूर थे पर हम दोस्त नहीं थे, और मैं नहीं चाह रहा था कि दोस्ती के नाम पे झूठ बोले. हम अज़नबी नहीं थे पर हम दोस्त भी नहीं थे.
मेरे व्यवहार से वंहा का माहौल बदल गया, पर शायद मैं कसूरवार नहीं था. ना ही मैंने कभी, ना ही उसने कभी, एक दूसरे से सच कहा था, हमने कभी ज़रूरी नहीं समझा, दुसरे को अपनी ज़िन्दगी के उन पलों में शामिल करना जिससे हम अक्सर परेशान होते हैं. और अगर ऐसा नही है तो शायद मैं सही था.
आज सुबह मैंने एक और करीबी (बदकिस्मती से वो भी मेरे दोस्त नही हैं) से पूछा, कि "ज़िन्दगी रिश्तों से अक्सर हार जाती है ना?
और उन्होंने कहा "इंसान रिश्तों से नही खुद से हार जाता है". आज मैं चुप था, शायद मैं ठीक सुन रहा था. मैं नकारात्मक नही था, ना ही मेरे साथ कुछ हुआ था, पर हाँ "आज मुझे लगा कि जीत के ज़श्न और हार के ग़म में हार ज्यादा प्रभावी होता है.
जैसे क्राइम की दुनिया में कहा जाता है , और हिन्दी फिल्मो के भरोसे हम सब जानते हैं कि ..हत्यारा एक बार सबूत मिटाने के लिये घटना स्थल पर जरूर लौटता है , या कुच अच्छा सा उदाहरण ले तो हम जानते हैं कि प्रेमी जोड़ा फर्स्ट मीटींग पाइंट पर जब तब फिर फिर मिलता रहता है ...कुछ उसी तरह ब्लागर अपनी पोस्ट पर एक बार जरूर फिर से आता है , टिप्पणियां देखने के लिये ....तो मैं भी यहां हूं .. टिप्पणी करके लेखक का मनोबल बढ़ाने का सारस्वत कार्य जरूरी है , स्वागत है ब्लाग की दुनिया में
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
swagat hai blog ki dunia mein apka
ReplyDeleteSwagat hai...kabhi kabhi khud ko tatolke dekhna achha hota hai!
ReplyDeleteअच्छी रचना बधाई। ब्लॉग जगत में स्वागत।
ReplyDeleteइधर उधर की अध-कचरा चीजों से अलग रिश्तों पर कुछ संवेदनशील् लाईनें पढ़ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteजीत के ज़श्न में और हार के ग़म में इन दोनों ही मौको पर कुछ रिश्ते सतही रूप से निभाये जाते हैं.
ReplyDeleteआपकी मानसिक ताकत यही है की आप जरुरत पड़ने पर कितना कष्ट झेल सकते हैं.
ब्लॉग लेखन में स्वागत है - निरंतर लिखें.
- सुलभ
आप भावुक लगते है
ReplyDeleteबहुत बढिया चिन्तन. स्वागत है.
ReplyDeletewelcome, dear
ReplyDeleteSahee kaha..haar adhik prabhavi hoti hai..jeetne ke baad haarne se dar lagta hai..haarne ke baad,jeetneki koshish hotee hai..
ReplyDeleteTahe dilse swagat hai..bhasha behad achhee hai...sahi uchharan..sahaj shailee..
धन्यवाद आप सभी का, पढ़ने के लिए, भावनाओ को समझने के लिए, और एक सहमती, एक कोशिश किसी को हिम्मत देने के लिए...
ReplyDeleteशशांक जी, भावुकता मेरी ताक़त है, जितना ये मुझे कमज़ोर बनाती है, मैं उतना ही इसे ख़ुशी कि तरफ मोड़ता रहता हूँ.
बहरहाल, आपक सबो को क्रिसमस और नए साल कि ढेर सारी बधाईयाँ....