Thursday, April 15, 2010

ग़ुलामी इनकी हकीक़त है इसलिए राजनीति आज शक्तिशाली है

समाजवादी पार्टी ने मंहगाई के विरोध में हाल ही में 13 प्रमुख राजनीतिक दलों की बैठक में लिए गए देश व्यापी हड़ताल के निर्णय को सफल बनाने के लिए प्रदेश के सभी उद्योगों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और अधिवक्ताओं से 27 अप्रैल को हड़ताल पर रहने का आह्मवान किया है। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता मोहन सिंह ने गुरुवार को संवाददाताओं से बातचीत में बताया कि 13 प्रमुख दलों की बैठक में देश में बढ़ती बेहताशा महंगाई के मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक विरोध करने का फैसला लिया गया था, जिसके तहत 27 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल होगी। उन्होंने कहा कि 27 अप्रैल को प्रदेश के सभी उद्योग, व्यापारिक प्रतिष्ठान हड़ताल में शामिल रहेंगे और अधिवक्ताओं से अपील की कि वे भी इस जन समस्या में अपनी भागीदारी निभाते हुए न्यायिक कार्य से विरक्त रहें।

पर क्यूँ? क्या इससे मंहगाई कम होगी अगर ऐसा होता है तो स्वाभाविक है हम सब को इसमे शामिल होना चाहिए पर मज़े के बात ये है कि 27 अप्रैल को हड़ताल में शामिल होने वाले में से ज़्यादातर लोगो को मंहगाई के नाम पर सिर्फ इतना मालूम होगा कि पार्टी ने बुलाया है और हमसब को वही करना है जो हमें हमारे नेता ने कहा है...

क्यूँ हमेशा विपक्ष विरोध कि बात करता है? क्यूँ नही, विपक्ष किसी समस्या को दूर करने के लिए देशव्यापी हड़ताल करती है... शायद इन हालात में हड़ताल कि ज्यादा ज़रुरत नही पड़ेगी पर सरकार कि मदद से ज़यादा ज़रूरी है सरकार बनना...
ऐसा नही ये बात सिर्फ समाजवादी पार्टी कि है, देश भर में फैले हज़ारो पार्टियों का एक ही हाल है, कहने को तो सब वैचारिक लोग हैं पर विचारधारा से ज्यादा ज़रूरी कुर्सी को पाना और अपने राजनैतिक क्षेत्र में अपनी सामाजिक हार को बचाना होता है...
यंहा हर किसी कि अपनी विचारधारा है, कोई हिन्दू के नाम पर लोगो को बाँट रहा है तो कुछ दलित और ब्रह्मिन के साथ है... विश्व के सबसे बड़े जनतांत्रिक देश में जंहा सिर्फ 15% लोग उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते हों, वंहा जाती, धर्म, अत्याचार और मंहगाई के नाम पर इन्हें लाखो खून लेने और देने वाले लोग मिल जाते हैं.. भारत में मुद्दा के अलावा और कुछ नही बदलता, क्यूंकि पिछले ६३ सालो में कुछ नही बदला.. हो सकता है मेरी बात से कुछ लोग सहमत नही हों, पर अगर आप आर्थिक उदारीकरण कि बात करेंगे तो आपको एक बार छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार के सुदूर गाँवो में जाना होगा, देखना होगा कि बदलाव क्या हुए हैं?

मोबाइल कम्पनियां गाँव गाँव तक पहुँच चुकी है, अखबार और टी आर पी चैनल वाले का प्रभाव भी पंहुच चुका है, उनकी बातें उनका चेहरा अब दिल्ली में भी दिखता है, पर एक चीज़ आज भी नही बदला है, जो कभी अंग्रेजों के ग़ुलाम थे, आज अपनों के ही ग़ुलाम हैं... ग़ुलामी इनकी हकीक़त है इसलिए राजनीति आज शक्तिशाली है...

लोग इस बाबत लिखते हैं, आवाज़ उठाते हैं, अलग अलग तरीको से विरोध प्रकट करते हैं, पर अपने फायदे के लिए, क्यूंकि आर्थिक उदारीकरण ने नजरिया और ज़रूरतों को तो बदल दिया, पर वक़्त के साथ और अपनों कि राजनीति ने हमें कभी बदलने नही दिया, वैश्विक मंच पर हमारी उपस्तिथि और हकीक़त में फर्क है जिसे हम साथ लेकर नही चल सकते, क्यूंकि हम आज भी हड़ताल करते हैं, विकास नही....

अशुद्धियों और वैचारिक हनन के लिए माफ़ी चाहता हूँ, आपके टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा..

4 comments:

  1. prem tum to bahut mature ho gaye ho. ajkal kaha ho. contact no kya hai? my no is 09873160517

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  2. bahut khub likha hai. hum bhartiyo ki adat mai shumar hai ki ek ke hankne per sabhi ankhein band karke chal dete hai. sahi kya hai is bare mai koi nahi sochta

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  3. bahut khub likha hai. hum bhartiyo ki adat mai shumar hai ki ek ke hankne per sabhi ankhein band karke chal dete hai. sahi kya hai is bare mai koi nahi sochta

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