पर इस बार अहिंसा नहीं सकरात्मक प्रतिरोध को साथ लेकर आओ, क्युंकि ये पत्थरदिल लोग अहिंसा की बात नहीं समझते.
सत्याग्रह के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता महात्मा गाँधी आज फिर आपकी ज़रुरत है. राष्ट्रपिता का दर्ज़ा देकर, आपकी फोटो नोटों में देकर, आपके नाम से गलियों का नाम रख और आपके नाम से मैदानों का नाम रख लोगों ने आपके आड़ में क्या क्या किया और क्या क्या कर रहे हैं आप नहीं जान सकते. कोई भगवान या खुदा नहीं है जो देख रहा हो. पर बापू अगर आना तो इस बार अहिंसा के साथ मत आना नहीं तो हार जाओगे. आपने जिस हिन्दुस्तान का सपना देख उसे आज़ाद करने में अपनी पूरी ज़िन्दगी लगा दी थी उसके लोग अब सिर्फ हिंसा की जुबान समझते हैं.
बापू तेरे पदचिन्ह आज भी अछूते हैं क्युंकि उसपर कोई चला ही नहीं. २ अक्टूबर को दारु की दुकाने बंद तो रहती हैं पर अगर आप आओगे तो मैं आपको दिखलाऊंगा यंहा हर गली, हर मोहल्ले में उस दिन ब्लैक में दारु मिलती है. खैर बेचने वालों की बात छोडिये ये धंधा है उनका, आखिर पापी पेट का सवाल जो है. पिने वालों की बात करते हैं. जब आप जिंदा थे तो लोग गंगा जल पीते थे कि अमर हो जाएँ अब गंगा नहाने के लायक भी नहीं है मजबूरन लोगों ने रम, वोदका और विस्की का सुबह से शाम तक सहारा ले लिया है. काश आप आज के दिनों का अखबार पढ़ते कल तक जंहा अखबारों में विचारों और सिधान्तों कि जगह होती थी आज उनमें सिर्फ हत्या, लूट, बलात्कार और भ्रस्टाचार सना होता है. अब अधिकारों के लिए कोई नहीं लड़ता बापू, किसी को फुर्सत नहीं है, वास्तव में आज़ाद जो हो गए हैं. आज़ादी से याद आया, क्या खूब आज़ादी दिलाई आपने. लोग अब कंही भी कभी भी किसी का बलात्कार कर लेते हैं, हत्या कर देते हैं, अब चोर रहे ही नहीं सब डकैत हो गए हैं. इतनी बेहतरीन आजादी शायद दुनिया में कंही नहीं होगी. भेदभाव की बात ही छोड़ दो, एक आप थे जो सर्वजन कि बात करते थे दूसरी मायावती हैं जो आजकल मुख्यमंत्री हैं एक प्रदेश की वो बात करती हैं. फ़र्क सबको मालूम है बताने की ज़रुरत नहीं है.
मैं सूट, कोट, जिन्स जैसे पश्चिमी कपड़ों का विरोधी नहीं पर आपको बताते चलूँ आपके विकसित भारतीयों को कुरते और धोती से नफरत होती है जिन्होंने आजतक धोती नहीं छोड़ी है उन्हें हीन भावनाओं से देखा जाता है. खैर आज़ाद देश है कुछ नहीं कह सकते, पर भाषा को तो देखो हिंदी लोगों को आती ही नहीं. हाँ, याद आया इस बार आना तो अपने आप को बदल कर आना. अधनंगे होकर हिंदी में इमानदारी की बात मत करना इस बार सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी चलेगा और कुछ नहीं. अब संघर्ष के मायने बदल गए बापू, महंगाई जो इतनी बढ़ गई है. आपके चरखे से निकला खादी अब ब्रांड हो गया है. इसे वही लोग बेचते हैं जिनको आपने खदेड़ कर भगाया था.
अब आपके कांग्रेस में कोई गोपाल कृष्ण गोखले नहीं रहे अब यंहा सिर्फ १० जनपद है जंहा से आदेश पारित होता है. एक आप थे जो कहते थे भारत को समझाने के लिए भारत भ्रमण ज़रूरी है, आज हालात यह है कि १० जनपथ का भ्रमण हो गया तो वो अरबों का मालिक बन जाता है. हाँ, भ्रमण से याद आया अब पैदल भ्रमण नहीं होता बापू, बड़ी - बड़ी गाड़ियों के काफिला में आज के समाजसेवक मिडिया वालों के साथ बात करते - करते भ्रमण किया करते हैं. गर्मी बढ़ गयी है न चेहरा काला हो जाता है. आपको याद दिलाऊँ, आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि जिस चंपारण से मिली थी उस प्रदेश की बात करते हैं. उसकी राजधानी पटना में आपके नाम से एशिया प्रसिद्ध सेतु है. पिछले २५ सालों से उसकी तबियत ख़राब है. प्यासा है, विकलांग है. खैर जब आओगे तब मैं आपको ले चलूँगा. जंहा तक मुझे लगता है इस बार भी आपका आन्दोलन वंही से शुरू होगा, पर इस बात के लिए नहीं कि सेतु ठीक हो जाये बल्कि इसलिए कि सेतु से आपका नाम हटे. बिहार आया तो एक बात और बताते चलूँ. आप, लाल बहादुर शास्त्री और सरदार पटेल किसानों को निर्भर बनाने कि बात करते थे आज का हाल तो देखिये किसानों के पास खेत रहे ही नहीं उनपे ऊँची - ऊँची इमारतें बन गयी और जो खेत बच गए उनपर खेती करने के लायक किसान नहीं बचे, क्या करें मंहगाई जो इतनी है.
पता है ये सब क्यूँ हुआ?, क्युंकि आपने तब अपना पूरा ध्यान भारत के भविष्य के बजाय सिर्फ आज़ादी प्राप्त करने पर दी थी. क्यूँ सह दिया था आपने इस कांग्रेस को? जिन गोरों को आपने भगाया था ये उन्हें विकसित मानकर उनके पीछे चलने के आदि हो गए हैं. लार्ड मेकाले याद है आपको, कितना मजबूर होकर लन्दन लौटा था वो हमारी भाषा, संस्कृति और संगठित समाज से हारकर. आप गए और वो खुद ब खुद जीत गया बापू. ना हमारी भाषा रही, ना संस्कृति ना समाज. समाज की छोडो अब घर नहीं रहा. २/२ के फ्लैट अब लोगों को आज़ादी का अहसास दिलाते हैं. अनसन और सत्याग्रह करो तो लाठियां चलाती है आपकी ये कांग्रेस. एक आप थे जो जवाहरलाल नेहरु के लिए बोलते थे एक दिग्विजय सिंह हैं जो राहुल गाँधी के लिए बोलते हैं. वैसे आजकल एक और राजनीतिक पार्टी भी है जिसे भारतीय जानता पार्टी के नाम से जानते हैं. मैं आपको ले चलूँगा इनके बड़े - बड़े मठाधीशों के पास. आपका हे राम शब्द के साथ अंत हुआ था, इनकी शुरुवात यंही से हुई. वैसे इस बार जब आप आयेंगे तो आपको यंहा राम मिलेंगे नहीं, उनका इनलोगों ने भरपूर प्रयोग कर लिया है जिससे उनका अस्तित्व ही खत्म हो गया है. अब वो भी पत्थरों के सहारे अंध विश्वासी लोगों को विश्वास दिलाते रहते हैं.
अब ज़रा आपके अपने सिद्धांतों का हाल देखिये. आप सत्य की व्यापक खोज में ज़िन्दगी भर स्वयं की गलतियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सिखा, आज लोग सत्य से भागने के लिए किसी और पर गलती मढ़ देते हैं. एक आप वकील थे और एक आज के वकील हैं सत्य - असत्य इनकी मुट्ठी में है. अहिंसा और अप्रतिकार बिलकुल नहीं बापू. अब सिर्फ प्रतिकार, विरोध, बदला और हिंसा का ज़माना है. प्रेम आज निष्क्रिय है अत्याचारी ही विजय होते हैं, एक दो नहीं आप आओगे तो देखना यही सिस्टम है यही सच्चाई है. एक आँख के लिए दूसरी आँख दुनिया को अँधा बना तो रही है पर इनका क्या करें बापू ये सारे जन्मजात ही अंधे हैं. आपकी ये पंक्ति अब दूरदर्शी नहीं दिखाई देती लोगों को. आपके आज़ाद भारत में पुलिस जनता की या जनता के लिए नहीं है. पुलिस सरकार की सेवा कर रही है.
इसलिए बापू आना ज़रूर. कई ऐसे भी हैं जो मजबूर हैं जिन्हें आपकी ज़रुरत है. पर किसी अंग्रेजी लिबास में, बिलकुल आक्रामक अंदाज़ में. अब इज्ज़त नहीं डर से काम होगा. जब तक लोग डरेंगे नहीं, इज्ज़त करेंगे नहीं. आपके प्रिय तुलसीदास भी कह गए हैं, "भय बिनु होई न प्रीत".
सत्याग्रह के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता महात्मा गाँधी आज फिर आपकी ज़रुरत है. राष्ट्रपिता का दर्ज़ा देकर, आपकी फोटो नोटों में देकर, आपके नाम से गलियों का नाम रख और आपके नाम से मैदानों का नाम रख लोगों ने आपके आड़ में क्या क्या किया और क्या क्या कर रहे हैं आप नहीं जान सकते. कोई भगवान या खुदा नहीं है जो देख रहा हो. पर बापू अगर आना तो इस बार अहिंसा के साथ मत आना नहीं तो हार जाओगे. आपने जिस हिन्दुस्तान का सपना देख उसे आज़ाद करने में अपनी पूरी ज़िन्दगी लगा दी थी उसके लोग अब सिर्फ हिंसा की जुबान समझते हैं.
बापू तेरे पदचिन्ह आज भी अछूते हैं क्युंकि उसपर कोई चला ही नहीं. २ अक्टूबर को दारु की दुकाने बंद तो रहती हैं पर अगर आप आओगे तो मैं आपको दिखलाऊंगा यंहा हर गली, हर मोहल्ले में उस दिन ब्लैक में दारु मिलती है. खैर बेचने वालों की बात छोडिये ये धंधा है उनका, आखिर पापी पेट का सवाल जो है. पिने वालों की बात करते हैं. जब आप जिंदा थे तो लोग गंगा जल पीते थे कि अमर हो जाएँ अब गंगा नहाने के लायक भी नहीं है मजबूरन लोगों ने रम, वोदका और विस्की का सुबह से शाम तक सहारा ले लिया है. काश आप आज के दिनों का अखबार पढ़ते कल तक जंहा अखबारों में विचारों और सिधान्तों कि जगह होती थी आज उनमें सिर्फ हत्या, लूट, बलात्कार और भ्रस्टाचार सना होता है. अब अधिकारों के लिए कोई नहीं लड़ता बापू, किसी को फुर्सत नहीं है, वास्तव में आज़ाद जो हो गए हैं. आज़ादी से याद आया, क्या खूब आज़ादी दिलाई आपने. लोग अब कंही भी कभी भी किसी का बलात्कार कर लेते हैं, हत्या कर देते हैं, अब चोर रहे ही नहीं सब डकैत हो गए हैं. इतनी बेहतरीन आजादी शायद दुनिया में कंही नहीं होगी. भेदभाव की बात ही छोड़ दो, एक आप थे जो सर्वजन कि बात करते थे दूसरी मायावती हैं जो आजकल मुख्यमंत्री हैं एक प्रदेश की वो बात करती हैं. फ़र्क सबको मालूम है बताने की ज़रुरत नहीं है.
मैं सूट, कोट, जिन्स जैसे पश्चिमी कपड़ों का विरोधी नहीं पर आपको बताते चलूँ आपके विकसित भारतीयों को कुरते और धोती से नफरत होती है जिन्होंने आजतक धोती नहीं छोड़ी है उन्हें हीन भावनाओं से देखा जाता है. खैर आज़ाद देश है कुछ नहीं कह सकते, पर भाषा को तो देखो हिंदी लोगों को आती ही नहीं. हाँ, याद आया इस बार आना तो अपने आप को बदल कर आना. अधनंगे होकर हिंदी में इमानदारी की बात मत करना इस बार सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी चलेगा और कुछ नहीं. अब संघर्ष के मायने बदल गए बापू, महंगाई जो इतनी बढ़ गई है. आपके चरखे से निकला खादी अब ब्रांड हो गया है. इसे वही लोग बेचते हैं जिनको आपने खदेड़ कर भगाया था.
अब आपके कांग्रेस में कोई गोपाल कृष्ण गोखले नहीं रहे अब यंहा सिर्फ १० जनपद है जंहा से आदेश पारित होता है. एक आप थे जो कहते थे भारत को समझाने के लिए भारत भ्रमण ज़रूरी है, आज हालात यह है कि १० जनपथ का भ्रमण हो गया तो वो अरबों का मालिक बन जाता है. हाँ, भ्रमण से याद आया अब पैदल भ्रमण नहीं होता बापू, बड़ी - बड़ी गाड़ियों के काफिला में आज के समाजसेवक मिडिया वालों के साथ बात करते - करते भ्रमण किया करते हैं. गर्मी बढ़ गयी है न चेहरा काला हो जाता है. आपको याद दिलाऊँ, आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि जिस चंपारण से मिली थी उस प्रदेश की बात करते हैं. उसकी राजधानी पटना में आपके नाम से एशिया प्रसिद्ध सेतु है. पिछले २५ सालों से उसकी तबियत ख़राब है. प्यासा है, विकलांग है. खैर जब आओगे तब मैं आपको ले चलूँगा. जंहा तक मुझे लगता है इस बार भी आपका आन्दोलन वंही से शुरू होगा, पर इस बात के लिए नहीं कि सेतु ठीक हो जाये बल्कि इसलिए कि सेतु से आपका नाम हटे. बिहार आया तो एक बात और बताते चलूँ. आप, लाल बहादुर शास्त्री और सरदार पटेल किसानों को निर्भर बनाने कि बात करते थे आज का हाल तो देखिये किसानों के पास खेत रहे ही नहीं उनपे ऊँची - ऊँची इमारतें बन गयी और जो खेत बच गए उनपर खेती करने के लायक किसान नहीं बचे, क्या करें मंहगाई जो इतनी है.
पता है ये सब क्यूँ हुआ?, क्युंकि आपने तब अपना पूरा ध्यान भारत के भविष्य के बजाय सिर्फ आज़ादी प्राप्त करने पर दी थी. क्यूँ सह दिया था आपने इस कांग्रेस को? जिन गोरों को आपने भगाया था ये उन्हें विकसित मानकर उनके पीछे चलने के आदि हो गए हैं. लार्ड मेकाले याद है आपको, कितना मजबूर होकर लन्दन लौटा था वो हमारी भाषा, संस्कृति और संगठित समाज से हारकर. आप गए और वो खुद ब खुद जीत गया बापू. ना हमारी भाषा रही, ना संस्कृति ना समाज. समाज की छोडो अब घर नहीं रहा. २/२ के फ्लैट अब लोगों को आज़ादी का अहसास दिलाते हैं. अनसन और सत्याग्रह करो तो लाठियां चलाती है आपकी ये कांग्रेस. एक आप थे जो जवाहरलाल नेहरु के लिए बोलते थे एक दिग्विजय सिंह हैं जो राहुल गाँधी के लिए बोलते हैं. वैसे आजकल एक और राजनीतिक पार्टी भी है जिसे भारतीय जानता पार्टी के नाम से जानते हैं. मैं आपको ले चलूँगा इनके बड़े - बड़े मठाधीशों के पास. आपका हे राम शब्द के साथ अंत हुआ था, इनकी शुरुवात यंही से हुई. वैसे इस बार जब आप आयेंगे तो आपको यंहा राम मिलेंगे नहीं, उनका इनलोगों ने भरपूर प्रयोग कर लिया है जिससे उनका अस्तित्व ही खत्म हो गया है. अब वो भी पत्थरों के सहारे अंध विश्वासी लोगों को विश्वास दिलाते रहते हैं.
अब ज़रा आपके अपने सिद्धांतों का हाल देखिये. आप सत्य की व्यापक खोज में ज़िन्दगी भर स्वयं की गलतियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सिखा, आज लोग सत्य से भागने के लिए किसी और पर गलती मढ़ देते हैं. एक आप वकील थे और एक आज के वकील हैं सत्य - असत्य इनकी मुट्ठी में है. अहिंसा और अप्रतिकार बिलकुल नहीं बापू. अब सिर्फ प्रतिकार, विरोध, बदला और हिंसा का ज़माना है. प्रेम आज निष्क्रिय है अत्याचारी ही विजय होते हैं, एक दो नहीं आप आओगे तो देखना यही सिस्टम है यही सच्चाई है. एक आँख के लिए दूसरी आँख दुनिया को अँधा बना तो रही है पर इनका क्या करें बापू ये सारे जन्मजात ही अंधे हैं. आपकी ये पंक्ति अब दूरदर्शी नहीं दिखाई देती लोगों को. आपके आज़ाद भारत में पुलिस जनता की या जनता के लिए नहीं है. पुलिस सरकार की सेवा कर रही है.
इसलिए बापू आना ज़रूर. कई ऐसे भी हैं जो मजबूर हैं जिन्हें आपकी ज़रुरत है. पर किसी अंग्रेजी लिबास में, बिलकुल आक्रामक अंदाज़ में. अब इज्ज़त नहीं डर से काम होगा. जब तक लोग डरेंगे नहीं, इज्ज़त करेंगे नहीं. आपके प्रिय तुलसीदास भी कह गए हैं, "भय बिनु होई न प्रीत".
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