Friday, June 29, 2012

विपक्ष या शासक

शहर से सड़क तक....
सफ़र से मंजिल तक ......
आसमान जैसा बड़ा.... 
या पैसे जैसा छोटा......

कौन हूं मैं.....??????
भीड़ में चलता एक आम आदमी.... या, बुलंदियों पर बैठा एक खाश आदमी....
माचिस की तीली जैसी कोशिश 
या फिर
हारा हुआ एक शख्श 

इस दौड़ती-भागती दुनिया में एक अपने हिस्से की ज़िन्दगी जीता एक रिश्ता  
या सिर्फ एक किस्मत ???
कौन हूं मैं.... ??

रेत से खेलता एक बच्चा 
या 
मकसद से लड़ता एक खिलाडी....

दिल के बहाने हँसता एक शायर 
या 
दुनिया के बहाने हँसने का नाटक करता एक कलाकार....

सच को समझता एक इंसान 
या 
मात्र, झूठ में जीता एक नागरिक
कौन हूं मैं?

दर्पण से कल्पना को समझता हुआ...
या 
किताबों से सफलता को नापता हुआ
कौन हूं मैं????

चाहरदीवारी में मजबूर
या
मोहल्ले का हीरो 

एक सवाल
या 
एक जज 

विपक्ष 
या 
शासक 
कौन हूं मैं....??????

Saturday, June 23, 2012

भविष्य हम जैसा चाहते हैं.... और उसे कैसे साकार करें.... इसी मकसद से ब्राज़ील के शहर "रियो डि जेनेरियो" में रियो+20 सम्मेलन का आयोजन किया गया.....  20 से 22 जून तक चले इस सम्मलेन के घोषणापत्र में भारत की चिंताएं साफ़ झलकती हैं.... जिसमें कहा गया है कि विकासशील देशों को सतत विकास के लिए और संसाधनों की जरूरत है... साथ ही, आधिकारिक विकास सहायता यानी ओडीए एवं वित्त व्यवस्था पर अवांछित शर्तों से बचना चाहिए.... भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिखरवार्ता के दौरान अपने संबोधन में कहा कि अगर अतिरिक्त धन और तकनीक उपलब्ध हुई तो विश्व के कई देश अधिक विकास  कर सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इन क्षेत्रों में औद्योगिक देशों से समर्थन कम होता है...... भारतीय प्रधानमंत्री ने विश्व समुदाय को ज़िम्मेदारी का अहसास कराते हुए कहा कि यह वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी है कि सम्मलेन को कैसे व्यावहारिक स्वरूप दिया जाय..... ताकि प्रत्येक देश अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप विकास करे.......  
वर्ष 1992 में रिओ-डी-जेनेरियो में पर्यावरण की रक्षा के लिए  'पृथ्वी सम्मेलन' हुआ था...... इस सम्मेलन के बाद 1997 में क्योटो संधि की शर्तें सामने आईं..... अलबत्ता, क्योटो संधि की शर्तों पर सख्ती से अमल की उत्सुकता किसी देश ने नहीं दिखाई..... सबसे बड़ा ग्रीन-हाउस गैस उत्सर्जक देश अमेरिका ने इस संधि से खुद को बाहर ही रखा...... और क्योटो संधि एक मखौल बनकर रह गई....... क्योटो के बाद 2007 में बाली में संपन्न बैठक भी बेअसर रही...... उसके बाद, संयुक्त राष्ट्र के बुलावे पर कोपनहेगन सम्मलेन क्योटो शर्तों की नाकामी को खत्म करने की एक उम्मीद के रूप में देखी गई..... लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात.... वहीं, अपने स्वार्थों को पर्यावरण से ज्यादा अहमियत देने वाला अमेरिका एक बार फिर रियो प्लस ट्वेंटी से बाहर है...... अब देखना यह है कि अमेरिका की गैरमौजूदगी में भारत, ब्राज़ील, चीन, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश प्रकृति को बचाने के लिए रियो+20 सम्मेलन को कैसे साकार करते हैं..... 
पिछले दो दशक में पर्यावरण को बचाने के लिए विश्व के ज़्यादातर देश एक मंच पर ज़रूर आए..... लेकिन अमेरिका की हठधर्मी के कारण पर्यावरण और विकास के बीच का हल नहीं निकला..... पर्यावरण बचाने की ये मुहिम 20 वर्षों में रियो से चलकर क्योटो, बाली, कोपनहेगन और फिर वापस  रियो तक आ गई..... फिर भी भविष्य हम जैसा चाहते हैं... उसपर संशय बरकरार है....