आतंकवाद हमेशा से विरोधात्मक एवं हिंसात्मक प्रतिक्रिया रहा है। हिंदुस्तान पाकिस्तान अलगाव के कारण एवं इस बात के लिए होती अन्र्तराष्ट्रीय राजनीति के कारण मुसलमान को आतंक से सबसे पहले जोड़ा गया. अशिक्षा और गरीबी ने पश्चिमी देशो को मौका दिया जिससे अमन और शांति का धर्म जेहाद के मायनों में भटक गया। ऐसा नहीं था कि मुसलमान को आतंक से जोड़ने वाले सिर्फ पश्चिमी देश थे, मुसलमान को आतंकी मुस्लिम नेताओं ने बनाया। जेहाद और कौम के नाम पर मुसलमानों ने खुद मुसलमान को आतंक से जोड़ा। विरोध इस हद तक था कि जेहादियों ने पूरे विश्व में अपना पैर पसार लिया कंहीं इसके प्रभाव में यहूदी आये कंहीं हिन्दू, कंहीं सिख तो कंहीं कोई और समय के साथ मुसलमानों को भी विरोध का सामना करना पड़ा। विश्व के कई देशों ने मुसलमानों को मानव समाज से अलग थलग कर दिया साथ ही जन्म दिया कौमी लड़ाई कोऔर यंही से जन्म हुआ जातिगत आतंक का। क्योंकि जातियां पहले से राजनीति के गिरफ्त में थी इसलिए आतंक के साए में राजनीति ने जातिगत आस्था का सहारा लिया. इसलिए इसे मुस्लिम या भगवा आतंकवाद के रूप में परिभाषित करने के बजाए राजनीतिक आतंकवाद के रूप में परिभाषित करना ज्यादा सार्थक होगा।
भारतीय परिप्रेक्ष में आतंकवाद हमेशा कश्मीर का मुद्दा रहा है, जिसका असर पूरे हिन्दुस्तान में रहा है, पर मुद्दे के बजायें पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और पूर्वोतर राज्यों ने भी कश्मीर के आतंकवाद का कहर झेला है। अपनी बात कहने के लिए आतंक का सहारा लेने वालों ने लाखों भारतीयों को मौत के घाट सुला दिया है। आतंकवाद को हिन्दुस्तान में जिस तरीके से प्रसारित किया गया उससे सबसे ज्यादा नुकसान किसी का हुआ तो वो भारतीय मुसलमान थे और जिन्होंने इसका फायदा उठाया और वो राजनेता रहे हैं।
फूट डालो और शासन करों की तर्ज पर राजनेताओं ने हिन्दु, मुसलमान, सिख और इसाई सबको कभी भारतीय नहीं बनने दिया। अपने फायदे के लिए साधारण भारतीयों को मानव बम बनाकर गली-मौहल्लों में आतंक फैलाने वाले सियासी नेता कल तक मुस्लिम आतंकवाद का नाम दे रहे थे, आज उसे हिन्दु आतंकवाद नहीं बल्कि भगवा शब्द का प्रयोग कर करोडो़ हिन्दुओं की आस्था को आतंकवाद से जोड दिया।
राम ने पाप का अंत कर पुण्य को जीत दिलायी थी, रामभक्त उनकी जमीन और उनके नाम की शह पर इंसानीयत का अंत कर आतंकवाद को पैदा कर रहे हैं। कल तक आतंकवाद को मुसलमान से जोड़ने वालो में हिन्दू सबसे आगे थे आज भगवा शब्द का आतंक से नाम जुड़ा तो देश भर के हिन्दुओं ने विरोध किया। ऐसा नहीं है कि सारे मुसलमान आतंकी हैं या फिर सारे हिन्दू या सिख पर सबसे बडा़ सवाल यह है कि क्यों नहीं ये हिन्दु आतंकवादी हैं जिन्हें कल तक आतंकवाद में मुसलमान दिखता था। पंजाब में आतंकवाद था मुसलमान नहीं थे। कर्नाटक में आतंकवाद था मुसलमान नहीं थे। अयोध्या में आंतक हुआ बल्कि अभी भी हो रहा है यहां भी मुसलमान नहीं हैं। खुद को पाक साफ कहने वाले हिन्दुओं ने क्या मुसलमानों को आतंकवादी बनने के लिए शह नहीं दी?
हाल ही में एक मशहूर पत्रिका के स्टींग ऑपरेशन ने खुलासा किया कि श्री राम सेना जो राजनीतिक रूप से भी सक्रिय हैं पैसे लेकर आंतक फैलाते हैं। श्रीराम सेना के एक बडे़ अधिकारी के अनुसार वो रामभक्त हैं और राम की जमीन को पवित्र करने की कोशिश कर रहे हैं। कभी गंदी राजनीति के सहारे कभी हथियारों के सहारे। गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के भगवा (शेफरन) शब्द के प्रयोग के बाद भारतीय हिन्दुओं के बीच खलबली मच गयी पर शायद हिन्दु भूल गये कि अयोध्या की जमीन पर आतंक फैलाते वक्त इनके जुबान पर ‘जय श्री राम’ और शरीर पर ‘भगवा रंग’ था। कई बुद्धिजीवी और अप्रत्यक्ष राजनीति में सक्रिय कई पत्रकार भगवा को सन्यास और भक्ति से जोड़कर बेवजह मामले पर अपनी बुद्धिजीविता को दिखने में लग गए पर किसी हिन्दू में इतनी ताकत नहीं दिखी जो भगवा शब्द के बजाय हिन्दू शब्द को आतंक से जोड़कर ये माने की आतंक की न कोई जात रही है न है।
अयोध्या की संकरी गलियों से लेकर कश्मीर की वादियों तक में आतंकवादियों के आतंक का शिकार आम आदमी हुआ है जिसका आतंक से कोई लेना देना नहीं है। आतंक से जीना बेहाल सिर्फ उनका हुआ है जो अपने ही देश में डरे सहमे जीने की कोशिश कर रहें हैं।
जम्मू - कश्मीर, बिहार, झारखण्ड, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराश्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, नागालैंड, असम, त्रिपुरा, मणीपुर, मिजोरम, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत पूरे हिन्दुस्तान में तकरीबन 178 ऐसी जगह हैं जहां कश्मीर जैसी या उससे भी भयवाह स्थिति है। कहीं आतंकवाद है कहीं उग्रवाद हैं। कहीं कोई मुस्लीम आतंक फैला रहा है तो कहीं हिन्दू, कंही सिख तो कहीं इसाई। ये मुस्लिम आतंक है या हिन्दू आतंक है । या सिर्फ आतंक।
जातिगत समाज में उपलब्ध मतदाताओं की जानकारी हर राजनेता के पास होती है पर आतंक फैलाने वालों की जानकारी किसी के पास नहीं है। कश्मीर में पत्थर कौन चलाते हैं इसे कोई राजनेता नहीं कह सकता पर टी.वी. चैनलों पर आकर बोलने का मौका दीजिए फिर देखिये इनके शब्दों का प्रयोग और अपनी-अपनी कौम के नाम पर लोगों को वर्गलाने में कोई कसर नहीं छोडते।
ऐसा लगता है कि गाँधी चले गये गये और आज के इन राजनेताओं को छोड़ गए। वर्षों से ये राजनेता राजनीति करते आ रहे हैं, कराते आ रहे हैं पर कोई हल नहीं निकला है और न ही निकलेगा क्योंकि जिस दिन आतंक और जाति की राजनीति खत्म होगी हल तो निकल जायेगा पर इनको शह देने वालों की राजनीति खत्म हो जाएगी।
दक्षीण एशिया में साम्यवाद के नाम पर 32 से भी ज्यादा संगठन हैं जो कौमी तौर पर हिंसक रवैया अपनाते हैं और इन्होंने अपनी-अपनी छतरी को भगवान या अल्ला के नाम से रंग रखा है।
आतंकवाद एक संगठीत व्यवसाय है जिसे विभिन्न देशों में मौजूद राजनेता अपने- अपने फायदे के लिए प्रयोग कर रहें हैं।
इस प्रयोग में इनका कोई नुकसान नहीं है और इन प्रयोग से मरने वालों का कोई हिसाब नहीं हैं। आस्था के नाम पर खून की नदियाँ बहाने वाले हमेशा यह तर्क देते आये हैं कि हम भी चुप नहीं बैठेंगे, अगर हमारी आस्था पर चोट पहुँचती है तो विरोधात्मक और हिंसात्मक रवैया अपनाकर हम भी आतंक का सहारा लेंगे लेकिन ये हिन्दु आतंकवादी है भगवा आतंकवादी नहीं अगर कंही कोई मुस्लिम आतंकवादी है तो। ये भी उतने ही क्रूर सजा के लायक हैं जितना की अफजल गुरू।
भारतीय परिप्रेक्ष में आतंकवाद हमेशा कश्मीर का मुद्दा रहा है, जिसका असर पूरे हिन्दुस्तान में रहा है, पर मुद्दे के बजायें पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और पूर्वोतर राज्यों ने भी कश्मीर के आतंकवाद का कहर झेला है। अपनी बात कहने के लिए आतंक का सहारा लेने वालों ने लाखों भारतीयों को मौत के घाट सुला दिया है। आतंकवाद को हिन्दुस्तान में जिस तरीके से प्रसारित किया गया उससे सबसे ज्यादा नुकसान किसी का हुआ तो वो भारतीय मुसलमान थे और जिन्होंने इसका फायदा उठाया और वो राजनेता रहे हैं।
फूट डालो और शासन करों की तर्ज पर राजनेताओं ने हिन्दु, मुसलमान, सिख और इसाई सबको कभी भारतीय नहीं बनने दिया। अपने फायदे के लिए साधारण भारतीयों को मानव बम बनाकर गली-मौहल्लों में आतंक फैलाने वाले सियासी नेता कल तक मुस्लिम आतंकवाद का नाम दे रहे थे, आज उसे हिन्दु आतंकवाद नहीं बल्कि भगवा शब्द का प्रयोग कर करोडो़ हिन्दुओं की आस्था को आतंकवाद से जोड दिया।
राम ने पाप का अंत कर पुण्य को जीत दिलायी थी, रामभक्त उनकी जमीन और उनके नाम की शह पर इंसानीयत का अंत कर आतंकवाद को पैदा कर रहे हैं। कल तक आतंकवाद को मुसलमान से जोड़ने वालो में हिन्दू सबसे आगे थे आज भगवा शब्द का आतंक से नाम जुड़ा तो देश भर के हिन्दुओं ने विरोध किया। ऐसा नहीं है कि सारे मुसलमान आतंकी हैं या फिर सारे हिन्दू या सिख पर सबसे बडा़ सवाल यह है कि क्यों नहीं ये हिन्दु आतंकवादी हैं जिन्हें कल तक आतंकवाद में मुसलमान दिखता था। पंजाब में आतंकवाद था मुसलमान नहीं थे। कर्नाटक में आतंकवाद था मुसलमान नहीं थे। अयोध्या में आंतक हुआ बल्कि अभी भी हो रहा है यहां भी मुसलमान नहीं हैं। खुद को पाक साफ कहने वाले हिन्दुओं ने क्या मुसलमानों को आतंकवादी बनने के लिए शह नहीं दी?
हाल ही में एक मशहूर पत्रिका के स्टींग ऑपरेशन ने खुलासा किया कि श्री राम सेना जो राजनीतिक रूप से भी सक्रिय हैं पैसे लेकर आंतक फैलाते हैं। श्रीराम सेना के एक बडे़ अधिकारी के अनुसार वो रामभक्त हैं और राम की जमीन को पवित्र करने की कोशिश कर रहे हैं। कभी गंदी राजनीति के सहारे कभी हथियारों के सहारे। गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के भगवा (शेफरन) शब्द के प्रयोग के बाद भारतीय हिन्दुओं के बीच खलबली मच गयी पर शायद हिन्दु भूल गये कि अयोध्या की जमीन पर आतंक फैलाते वक्त इनके जुबान पर ‘जय श्री राम’ और शरीर पर ‘भगवा रंग’ था। कई बुद्धिजीवी और अप्रत्यक्ष राजनीति में सक्रिय कई पत्रकार भगवा को सन्यास और भक्ति से जोड़कर बेवजह मामले पर अपनी बुद्धिजीविता को दिखने में लग गए पर किसी हिन्दू में इतनी ताकत नहीं दिखी जो भगवा शब्द के बजाय हिन्दू शब्द को आतंक से जोड़कर ये माने की आतंक की न कोई जात रही है न है।
अयोध्या की संकरी गलियों से लेकर कश्मीर की वादियों तक में आतंकवादियों के आतंक का शिकार आम आदमी हुआ है जिसका आतंक से कोई लेना देना नहीं है। आतंक से जीना बेहाल सिर्फ उनका हुआ है जो अपने ही देश में डरे सहमे जीने की कोशिश कर रहें हैं।
जम्मू - कश्मीर, बिहार, झारखण्ड, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराश्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, नागालैंड, असम, त्रिपुरा, मणीपुर, मिजोरम, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत पूरे हिन्दुस्तान में तकरीबन 178 ऐसी जगह हैं जहां कश्मीर जैसी या उससे भी भयवाह स्थिति है। कहीं आतंकवाद है कहीं उग्रवाद हैं। कहीं कोई मुस्लीम आतंक फैला रहा है तो कहीं हिन्दू, कंही सिख तो कहीं इसाई। ये मुस्लिम आतंक है या हिन्दू आतंक है । या सिर्फ आतंक।
जातिगत समाज में उपलब्ध मतदाताओं की जानकारी हर राजनेता के पास होती है पर आतंक फैलाने वालों की जानकारी किसी के पास नहीं है। कश्मीर में पत्थर कौन चलाते हैं इसे कोई राजनेता नहीं कह सकता पर टी.वी. चैनलों पर आकर बोलने का मौका दीजिए फिर देखिये इनके शब्दों का प्रयोग और अपनी-अपनी कौम के नाम पर लोगों को वर्गलाने में कोई कसर नहीं छोडते।
ऐसा लगता है कि गाँधी चले गये गये और आज के इन राजनेताओं को छोड़ गए। वर्षों से ये राजनेता राजनीति करते आ रहे हैं, कराते आ रहे हैं पर कोई हल नहीं निकला है और न ही निकलेगा क्योंकि जिस दिन आतंक और जाति की राजनीति खत्म होगी हल तो निकल जायेगा पर इनको शह देने वालों की राजनीति खत्म हो जाएगी।
दक्षीण एशिया में साम्यवाद के नाम पर 32 से भी ज्यादा संगठन हैं जो कौमी तौर पर हिंसक रवैया अपनाते हैं और इन्होंने अपनी-अपनी छतरी को भगवान या अल्ला के नाम से रंग रखा है।
आतंकवाद एक संगठीत व्यवसाय है जिसे विभिन्न देशों में मौजूद राजनेता अपने- अपने फायदे के लिए प्रयोग कर रहें हैं।
इस प्रयोग में इनका कोई नुकसान नहीं है और इन प्रयोग से मरने वालों का कोई हिसाब नहीं हैं। आस्था के नाम पर खून की नदियाँ बहाने वाले हमेशा यह तर्क देते आये हैं कि हम भी चुप नहीं बैठेंगे, अगर हमारी आस्था पर चोट पहुँचती है तो विरोधात्मक और हिंसात्मक रवैया अपनाकर हम भी आतंक का सहारा लेंगे लेकिन ये हिन्दु आतंकवादी है भगवा आतंकवादी नहीं अगर कंही कोई मुस्लिम आतंकवादी है तो। ये भी उतने ही क्रूर सजा के लायक हैं जितना की अफजल गुरू।
- गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के भगवा (शेफरन) शब्द के प्रयोग के बाद भारतीय हिन्दुओं के बीच खलबली मच गयी पर शायद हिन्दु भूल गये कि अयोध्या की जमीन पर आतंक फैलाते वक्त इनके जुबान पर ‘जय श्री राम’ और शरीर पर ‘भगवा रंग’ था।
- मुसलमान को आतंक से जोड़ने वाले सिर्फ पश्चिमी देश नहीं थे, मुसलमान को आतंकी मुस्लिम नेताओं ने बनाया। जेहाद और कौम के नाम पर मुसलमानों ने ही खुद को आतंक से जोड़ा। अशिक्षा और गरीबी ने पश्चिमी देशो को मौका दिया जिससे अमन और शांति का धर्म जेहाद के मायनों में भटक गया।
- एक मशहूर पत्रिका के स्टींग ऑपरेशन ने खुलासा किया कि ‘श्री राम सेना’ जो राजनीतिक रूप से भी सक्रिय हैं पैसे लेकर आंतक फैलाते हैं। श्रीराम सेना के एक बडे़ अधिकारी के अनुसार वो रामभक्त हैं और राम की जमीन को पवित्र करने की कोशिश कर रहे हैं। कभी गंदी राजनीति के सहारे कभी हथियारों के सहारे।