Sunday, August 4, 2013

रिश्तों की ये डोर बस चलती रहे, ताउम्र


मेरे लिए दोस्ती थोड़ी अलग थी. शायद, यही वजह है कि मैं कभी डरा नहीं। लेकिन आज जब सारे दोस्तों से दूर अपने घर पर हूँ तो उनकी बहुत याद आती है. ऐसा नहीं है कि आज दोस्ती दिवस है इसलिए, बल्कि इसलिए कि अब आज़ाद नहीं हूँ . कुछ रिश्तों की मजबूरियाँ होती है. मसलन माता-पिता, पत्नी, बच्चे, भाई-बहन व् अन्य रिश्तेदार। ये वो रिश्ते हैं जिन्हें हम चाह कर भी खुद से दूर नहीं कर सकते. वहीं दोस्त हम खुद बनाते है, खुद निभाते हैं. यही कारण है कि दोस्ती हर रिश्ते से खाश हो जाता है. 
मेरा बचपन, युवावस्था घर से दूर दोस्तों के साथ बीता { मैं अनुशाषित नहीं हूँ इसका एक कारण ये भी है }. और मैं ख़ुशनसीब हूँ कि मुझे एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे दोस्त मिले जिन्होंने मुझे अपने दिल के सबसे करीब रखा, मेरे आत्म-सम्मान को कभी चोट नहीं पहुँचाया और सबसे बड़ी बात उन्होंने कई बार  गैर-वक़्त में मुझे कभी घर की कमी मह्शूश नहीं होने दिया. ऐसे ही कुछ संस्मरण के साथ मेरे प्यारे दोस्तों को मेरा ढेर सारा प्यार और शुभ कामनाएँ . 

अंजू सिंह सेंगर : मेरी पहली दोस्त जिसने मुझे समझाया एक लड़का और एक लड़की भी दोस्त हो सकते हैं. बगोदर में हमारे वो दो साल रिश्तों के रोमांच की वो पहली बारिश थी. 

साकेत सिंह : शुक्रिया मेरे भाई तुमने मुझे जिंदादिल, निडर और चालाक बनाया। पटना में तुम्हारे साथ ( सुधीर, अजय और अन्य ) बिताए वो दो साल काफी रोमांचक रहे. और वो बुनियाद आज तक जारी है. 

प्रकाश : हमारे रिश्ते को क्या नाम दूं मुझे नहीं मालूम, लेकिन तब यह दोस्ती से भी ऊपर था. 1998 से लेकर 2013 तक भी यह वैसा ही है. इसलिए शुक्रिया क्यूंकि ये आपकी वजह से है. 

आशीष तिवारी : मेरा पहला दोस्त जो मुझे बिहार से बाहर मिला. रायपुर में तुम्हारे साथ बिताये उन पलों को याद कर मैं शिहर उठता हूँ . इतने कम समय में हमने कितनी ज़िन्दगी वहां जी है वो सिर्फ मैं और तुम समझ सकते हैं . तुम्हारी ऊर्जा असीमित है, इसे बरकरार रखना और लड़ाई जारी रखना। 

मिसेज बोथरा : मैं तुम्हे भले ही छोटी कहकर बुलाता हूँ लेकिन तुम घर से दूर मेरी मां की तरह थी . तुम करोड़ों में एक हो, न सिर्फ मेरे लिए बल्कि अपने हर दोस्तों के लिए. मुझे बहुत खुशी मिलती है जब हर कोई तुम्हारी तारीफ़ करता है. 

मदीहा हसन : क्या कहूँ ? मेरी खुश नसीबी थी कि हमलोग रायपुर से लखनऊ शिफ्ट हुए. वंहा मुझे तुम मिलीं। तुमने मुझे जीना सिखाया, बोलना सिखाया। आज भी मैं जब मुसीबत में होता हूँ तो तुम याद आती हो. मैं तुम्हारी दोस्ती के लायक नहीं था फिर भी मेरे कुछ अच्छे करम होंगे कि तुमने मुझपर यकीन किया। मुझे आज भी इस बात पर गर्व होता है कि मैंने तुम्हारे नज़रिए को एक हद तक गलत साबित किया ( बिहारियों को लेकर ).  अपना ख़्याल रखना और अपने मियाँ का भी :) 

शिंजिनी  सिंह : वो लगभग तीन साल. मैं, तुम और हमारा नज़रिया . अगर तुम न मिलती तो शायद मैं सामाजिक न्याय को लेकर आज भी लड़ नहीं रहा होता। मैं भी किसी कंपनी का पट्टा अपने गले में टांगकर शहर की अंधी - बेमंजिल दौड़ में शामिल होता। तुम्हारे कारण मैं थोड़ी बहुत अंग्रेजी समझ पाया और शायद मेरी वजह से तुम हिंदी। ज़िन्दगी में ज़्यादातर लोगों को ऐसा मौका कम ही मिलता है कि उनके पास तुम्हारे जैसा दोस्त हो . मुझे गर्व है कि मुझे ये मौक़ा मिला। और खुश हूँ कि इस साल मुझे तुम्हारे साथ रहने का एक और मौका मिलने जा रहा है.  

हर्षिता तलवार (मिसेज उप्पल) : थोड़ी सी हंसी, थोडा सा गुस्सा और ढेर सारी शरारतें। यक़ीनन तुम त्रिमूर्ति का साथ वो भी एक साथ और मुझ जैसे जाहिल गंवार को. ख़ुशी होती है यह जानकार कि तुम आज भी वैसी ही हो. बस ऐसी ही रहना। 

आशीष दीक्षित : मेरा भाई, मेरी माशूका, मेरी जान तुम बहुत याद आते हो. मैं जब जब रोता हूँ तो तेरी बहुत याद आती है, लगता है काश तुम साथ होते, मुझे समझाते, डाँटते। तुम साथ नहीं हो तो लगता है कि अकेलापन क्या होता है. तुमने मुझपर जो यकीन इतने वर्षों से दिखाया है मैं उसे जाया नहीं होने दूंगा मेरे भाई. बस किसी तरह मेरी ज़िन्दगी में लौट आओ. 

विष्णु कटारा : दोस्त तुम अलग हो. और सबसे खाश बात यह है कि तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है जिसमे मुझ जैसे कई दोस्तों के लिए अथाह जगह है. तुम प्राईसलेस हो. तुम्हारे दिल के करीब रहना बहुद ही सुखद अनुभव रहा है और उम्मीद करते हैं आगे भी रहेगा। तुम्हारा असाधारण व्यक्तित्व और साधारण व्यवहार आज के दौर में प्रासंगिक नहीं है लेकिन यह बेहतरीन है और इसे जाने मत देना।  
फीलिप्स : अगर तुम न होती तो शायद मैं ये लड़ाई हार चुका होता। नोयडा में तम्हारा साथ वो भी मेरे सबसे मुश्किल वक़्त में वाकई सिर्फ तुम दे सकती थी. ज़िन्दगी में तुमने मुझसे ज्यादा उतार चढ़ाव देखे हैं, तुम आज भी किस्मत से लड़ रही हो और यकीन रखना मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. 

शशिकान्त : ज़िन्दगी के मध्य में तुम्हारा लम्बा साथ मुझे आज भी अपने सपनों के लिए प्रेरित करता है . जाने अनजाने तुम कई भूल करते रहे फिर भी हम साथ हैं, ये सब कुछ तुम्हारे प्रयासों का नतीजा है. मोड़ पर रोशनी है, ज़रुरत बस चलते रहने की है. यूँ ही चलते रहो. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. 

प्रखर सिंह : कॉलेज दिनों में हम दोस्त रहे न रहे, लेकिन वक़्त ने हमें दोस्त बना ही दिया। तुम्हारा घर के प्रति प्यार, अपनो के साथ हमेशा खड़े रहने की सोच और नशे से दूरी तुम्हे एक अलग लीग में खड़ा करता है. अखबार के दौरान तुम्हारा साथ (व्यक्तिगत) मिला इसके लिए शुक्रिया। हम हमेशा साथ रहेंगे तबतक, जबतक हमारी मंजिल न मिल जाए. तुम इकलौते  दोस्त हो जो मेरी सोच के समकक्ष मेरा साथ निभाते हो और यही हमारी नजदीकियों का सबसे अहम् कारण  है. मैंने तुमसे बहुत कुछ सिखा है, उम्मीद करता हूँ ये सिलसिला जारी रहेगा। 

अतुल शंकर राय : अतुल भैया आप करोड़ों में एक हैं. हम सब की खुशनसीबी है कि  हम आपके दोस्तों की लिस्ट में हैं. आप एक बेहतरीन और नेकदिल इंसान हैं इसलिए सिर्फ आपसे उम्मीद करता हूँ कि  बस ऐसे ही रहिए। समाज और देश को आपकी ज़रुरत है. आपकी निडर सोच हम सबको हौंसला देती है. हमारा हर सपना पूरा होगा जो हमने बम्बई से लेकर दिल्ली और लखनऊ की गलियों में देखा था बस यूँ ही स्पोर्टी बने रहिये। आपका असाधारण व्यक्तित्व और साधारण व्यवहार आज के दौर में प्रासंगिक नहीं है फिर भी आपकी जवाबदेही आपको ऐसे ही बने रहने को मजबूर कराती है जो इंसानियत के लिए एक बेहतरीन तोहफा है. आपके होने का एक खाश मकसद है इसे ताउम्र म्हणत कर साबित करते रहना होगा। 

कारू सक्सेना : हम यूँ मिले तो पहले ही थे लेकिन अब जाना हममे कॉमन क्या था. हम दोस्त अब बने हैं लेकिन शायद हमें पहले होना था. उम्मीद करते हैं ज़िन्दगी में कई बेहतरीन मौके आयेंगे। 

आप सबों के अलावा कई और भी हैं जिनके साथ बेहतरीन वक़्त गुजरा। हमेशा साथ मिला। प्यार मिला। और आज भी सबकुछ वैसा ही है जैसा था. सोभित निगम भाई, हेमेन्द्र धर, अमित शर्मा, संदीप पाण्डेय, प्रितपाल, कृति गुप्ता, निधी, नम्रता, ईशा, अखिलेश भाई, राहुल पाण्डेय, नितेश सिंह, निशांत, के पी मौर्य और कई अन्य आप सबों को ढेर सारा प्यार और दोस्ती दिवस की सुभ कामनाएं .… 
आपका 
प्रेम सागर