Sunday, February 14, 2010

.........फिर वापस आज़ादी का ज़श्न मनाया जायेगा.......

63 साल पहले जब भारत आज़ाद हुआ, तब से लेकर आज तक एक विवाद जो भारतीय युवाओं के मन में चल पड़ा, वो गाँधी, भगत सिंह, और कई महान व्यक्तित्व के योगदानो की तुलना में उलझ गए, वो भूल गए आज़ादी के मतलब को, वो भूल गए गुलामी के दर्द को, शायद हमने, आपने, हम सब ने कुछ गलत नही किया... क्यूंकि हमने उस दर्द को फील नही किया.... हमने सिर्फ अपनी आज़ादी के ज़श्न में खुश रहना सिखा, अपने अधिकारों के लिए आवाजें उठाई, ब्लॉग लिखे, हममे से कुछ लोगो ने सेना ज्वाइन किया, कुछ पत्रकार बने, वक़्त बदला, आर्थिक उदारीकरण के दौर में हमने कम उम्र में कितना कुछ पाया, देश आगे बढे, हम भी आगे बढे, कम उम्र में बढे, औरतों को औरतों से प्यार हुआ, मर्दों को मर्दों से, ये संख्या इतनी बढ़ी की सरकार को झुकना पड़ा, हमने फिर ब्लॉग लिखा, सहमती जताई... पैसे की महत्ता इतनी बढ़ी की हमने अपने बच्चों को और अपने मां-पिताजी को भी केयर टेकर के जिम्मे दे  चल पड़े अपने आज़ाद ज़िन्दगी को...
 इससे ना सहमत लोगो ने तब भी आवाजें उठाई, ब्लॉग लिखे, उन मजबूरों के लिए आँसूं बहाए...
 इन 63 सालों में कई समाज सेवको ने एक बात बार-बार दुहराया, फिरंगियों के खाने को बंद करो, हमने एक नही सुनी... हमने उस बर्गर में अपनी इमेज को देखने कि कोशिश की...  ब्रांड आया, ज़िन्दगी जीने में और मज़ा आया, अब हम किसी के नौकर नही थे, व्यापार के इस दौर में हमने बिजनेस किया, शिक्षा का, धर्म का, देश का, आस्था का, अपने ही लोगो की ज़रूरतों के साथ, बदलते वक़्त के नाम पर हमने कई अनसुलझे  अपनों के साथ बिजनेसकिया , पत्रकार के रूप में, राजनेता के रूप में, समाज सेवक के रूप में, पुलिस के रूप में, वकील के रूप में....
ना जाने कितने चहरे बने, कितने मोहल्ले बने, कितनी सोसाइटी बनी, उनमे ना जाने कितने फ्लैट बने.... बदलते वक़्त ने हमें सिखाया valentine day मनाना......
हम गलत नही हैं .... क्यूंकि हम आज़ाद हैं, वक़्त बदलता है, चीजें बदलती है, लोग बदलते हैं, विचारधाराएँ बदलती है..कुछ नही बदलता, तो देश, के वो लोग जिन्होंने अपनी जान दे दी, अपनी आज की  इस आज़ादी के लिए, भगत सिंह याद हैं हमें, पर याद नही valentine day के एक दिन पहले उनकी वर्षी मनाई जाती है....
नही बदलता तो वो है,  गुलामी का दर्द.....
नही बदलता वो सफ़र जो पिछले 63 सालों में हमने वैश्विक स्तर पर बनाई है....
नही बदलता वो दौर जिसे सचिन तेंदुलकर और लता दी जिते हैं....
बदल गए मायने.... और हमने अपने इस मायने को एक अलग अंदाज़ में फिर लिखे, विरोध जताया....
लिखने का ये दौर कभी थमेगा नही.... ब्लॉग लिखे जायेंगे.... आवाजें उठाई जाएँगी.....
फिर वापस आज़ादी का ज़श्न मनाया जायेगा......

2 comments: